पाताल का मैं तारा हूँ।
हारा हुआ, मारा हुआ
हर ज़ख्म से छलनी हुआ
खुद के नज़रो से गिरा हुआ
सुनसान राहों का आवारा हूँ
पाताल का मैं तारा हूँ।
ना चाँद से कोई वास्ता
तारो से ना ही रिश्ता हैं
बुझा हुआ मशाल सा
दर्द का मज़ाल सा
धरती का मैं नकारा हूँ
पाताल का मैं तारा हूँ।
इस सच के संसार मे
सभ्य से विचार मे
पाखण्ड का मैं ध्वज लिए
झूठ के अत्याचार सा
पाप ही सारा का सारा हूँ
पाताल का मैं तारा हूँ।
काल का कलंक मैं
लंकपति का क्रोध हूँ
अभिशापित सीता समान
सुपथ मे आया विरोध हूँ
अखण्ड सा अँधियारा हूँ
पाताल का मै तारा हूँ।